लगभग सभी लोग यह जानते हैं कि चन्द्रमा हमारी पृथ्वी के गिर्द परिभ्रमण
करता है। हमारे सौरमण्डल के अन्य ग्रहों कि अपेक्षा चन्द्रमा पृथ्वी के काफी समीप
है यानि महज़ 2 लाख 40 हज़ार मील के फासले पर।
चाँद के निर्माण के बारे में जो सबसे
मशहूर अनुमान हैं, उसके अनुसार चाँद का जन्म साढ़े चार अरब वर्ष पूर्व उस समय हुआ था, जब थीया नामक मंगल ग्रह के
आकार के एक पिंड की टक्कर पृथ्वी से हुई थी। इस टक्कर के बाद खरबों टन का मैग्मा
और पत्थर पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा था जो ठंडा होकर चाँद बना था। हालांकि यह
सिद्धांत पूर्ण नहीं है क्योंकि इसके अनुसार पृथ्वी पर किसी समय मैग्मा का महासागर
था, लेकिन ऐसे कोई साक्ष्य नहीं
मिले हैं। इसके बावजूद, चाँद के निर्माण की प्रक्रिया यह सिद्धांत अन्य किसी की अपेक्षा
बेहतर तरीके से समझाता है।
सौरमंडल के निर्माण के समय जब ग्रहों की सरंचना चल रही थी, यह
स्थान बेहद भीड़ भरा था। ग्रहों की कक्षाएं अपना स्थान ले रही थी और कई एस्टरॉयड
इधर-उधर उड़ रहे थे। एक अपेक्षाकृत स्थिर आकाशीय चट्टान L5 की
पृथ्वी के साथ विशेष घनिष्ठता थी। पृथ्वी की कक्षा में लेकिन उससे अलग अस्तित्व
बनाए रखने वाला L5 आधुनिक ट्रोजन उल्काओं का घर
भी है। L5 का पिंड आकार धीर-धीरे बढ़ने पर यह
अस्थिर होने लगा था। जल्दी ही इसके दोलने से यह पृथ्वी से टकराया। इस टक्कर से
छिटक कर हटा पदार्थ ही कालांतर में चाँद के तौर पर सामने आया जो शुरुआत में
महासागरों से अटा था जिनके प्रमाण अपोलो यान के एस्ट्रोनॉट्स को मिले हैं।
अपने अपेक्षतया बड़े आकार की पृथ्वी के गिर्द चक्कर काटने
वाला चाँद पृथ्वी के लिए कई मायनों में जरूरी कार्य भी करता है। हैरानी की बात यह
है कि पृथ्वी के ही समान आकार के शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है। एक अन्य समान आकार
ग्रह मंगल के उपग्रह बेहद छोटे हैं जो औसतन 20 किलोमीटर अर्द्धव्यास के हैं। इस
दृष्टि से चाँद सौर मंडल के सबसे बड़े उपग्रहों में से एक है। चाँद के अस्तित्व
में आने के पीछे के सिद्धांत के बारे में एक अनुमान यह भी है कि उसकी सतह पृथ्वी
से मिलती-जुलती है। इसके बारे में वैज्ञानिकों ने कई चंद्र अभियानों के बाद ही ‘महाटक्कर’ के
सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
