इस
दुनिया में ९९% लोग आस्तिक है, जिनका ईश्वर पर विश्वास है कि वही दुनिया को संचालित
करता है। मैंने एक दिन अपने मित्र से पूछा की तुम्हें क्यों लगता है की ईश्वर जैसी कोई
चीज है जो सारी दुनिया को संचालित करती है उसने मुझसे थोड़ा क्रोधित होते हुए पूछा की
यदि ईश्वर नहीं है तो सोचो ये दुनिया कहाँ से आयी? हम लोग, ये पूरा ब्रह्माण्ड कहाँ से उत्पन्न हो गया?
मैंने उससे कहा कि किसी प्रश्न का यदि सार्थक जवाब उपलब्ध न हो, तो क्या हमें उसे ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए? शायद इसका कारण ईश्वर है। इस प्रश्न का तो कोई उत्तर हो ही नहीं सकता क्योंकि हर उत्तर स्वयं में एक प्रश्न उत्पन्न करता है। यदि मैं आपसे कहूँ कि यह दुनिया अनंत काल से उपलब्ध है तो आप कहेंगे कि ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन यह सोचो कि यदि ईश्वर स्वयं यह सोचे (क्योकि तुम यह नहीं सोच सकते) कि वह कहाँ से आया? सोचो कि उसके पास इसका क्या जवाब होगा? क्या वह भी इसे अपने ईश्वर पर छोड़ देगा या कहेगा कि मैं अनंत काल से उपलब्ध हूँ। क्या मानसिक स्थिति इसके लिए तैयार है? क्योंकि समय की गणना असंभव है। उसके पास इसका जवाब हो ही नहीं सकता है। वह शक्तिमान तो हो सकता है लेकिन सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता है। कल मनुष्य भी किसी के लिए ईश्वर हो सकता है, मनुष्य चाहे उसे कैसे भी संचालित कर सकता है, वह चीज (जैसे मशीनी जीव जिसकी स्वयं अपनी बुद्धि हो, जो की अब संभव है) मनुष्य के सामने एक भिखारी की तरह हो सकता है जैसे कि आज का मनुष्य अपने ईश्वर के सामने। हम उसके लिए सर्वशक्तिमान हो सकते है उसकी सारी क्रिया-कलापों को हम नियंत्रित कर सकते है लेकिन वास्तव में हम सर्वशक्तिमान नहीं है और न ही कोई हो सकता है, क्योकि हम अपने ईश्वर के सामने भिखारी है। हम सोच रहे है की हमे भी कोई नियंत्रित कर रहा है लेकिन यह बात वह मशीनी जीव नहीं सोच रहा होगा, उसके लिए हम ही ईश्वर है। हर प्रश्न का उत्तर एक नए प्रश्न को जन्म देता है इसलिए प्रश्नों के अंत के लिए हमने ईश्वर को गढ़ लिया है। सारे प्रश्नों को उसके जवाब के लिए ईश्वर पर छोड़ कर मुक्त हो जाते हैं हम खोजी बनते ही नहीं है। उपरोक्त बातों से मैं आप लोगों को नास्तिक प्रतीत हूंगा लेकिन मैं नास्तिक नहीं हूँ।
बुद्ध, महावीर ने कहा था कि ईश्वर नहीं है, वह नास्तिक प्रतीत होते हैं लेकिन उनका पुनर्जन्म में विश्वास था जो की मन में खटकता है, क्योंकि हम पुनर्जन्म को ईश्वर से जोड़ कर देखते है। कारण यह है कि वे कहते हैं "जिस तरह का स्वरुप ईश्वर का मनुष्य ने बना रखा है वह अतार्किक है क्योंकि वहाँ प्रश्न शेष है प्रश्नों का गिर जाना ही महत्व पूर्ण है।" उन्होंने कहा "सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही ईश्वर है उसका कोई विशेष रूप नहीं है। पूरी व्यवस्था का नाम ही ईश्वर है।" उन्होंने कहा था कि चेतना के मूल बिंदु पर तुम्हें इस व्यवस्था का पूर्ण ज्ञान होगा, जिसे हम ज्ञान कहते है, जिसकी एक मात्र उपलब्धि का साधन ध्यान है। मस्तिष्क के जागृत अवस्था मैं निर्विचार निष्काम हो जाना ही चेतना के केंद्र बिंदु पर पहुँचना है। क्योकि मैं नहीं पंहुचा हूँ इसलिए मैं आस्तिक भी नहीं हूँ, क्योकि खोज रहा हूँ ईश्वर को (उस व्यवस्था) इसलिए नास्तिक भी नहीं हूँ। मध्य बिंदु पर हूँ। उपरोक्त बातो के आधार पर मैं केवल इतना कहना चाहूँगा कि खोजी बने न कि समाज व् धर्म ने जो बता दिया उसको आँख बंद कर के अनुसरण करें।
मैंने उससे कहा कि किसी प्रश्न का यदि सार्थक जवाब उपलब्ध न हो, तो क्या हमें उसे ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए? शायद इसका कारण ईश्वर है। इस प्रश्न का तो कोई उत्तर हो ही नहीं सकता क्योंकि हर उत्तर स्वयं में एक प्रश्न उत्पन्न करता है। यदि मैं आपसे कहूँ कि यह दुनिया अनंत काल से उपलब्ध है तो आप कहेंगे कि ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन यह सोचो कि यदि ईश्वर स्वयं यह सोचे (क्योकि तुम यह नहीं सोच सकते) कि वह कहाँ से आया? सोचो कि उसके पास इसका क्या जवाब होगा? क्या वह भी इसे अपने ईश्वर पर छोड़ देगा या कहेगा कि मैं अनंत काल से उपलब्ध हूँ। क्या मानसिक स्थिति इसके लिए तैयार है? क्योंकि समय की गणना असंभव है। उसके पास इसका जवाब हो ही नहीं सकता है। वह शक्तिमान तो हो सकता है लेकिन सर्वशक्तिमान नहीं हो सकता है। कल मनुष्य भी किसी के लिए ईश्वर हो सकता है, मनुष्य चाहे उसे कैसे भी संचालित कर सकता है, वह चीज (जैसे मशीनी जीव जिसकी स्वयं अपनी बुद्धि हो, जो की अब संभव है) मनुष्य के सामने एक भिखारी की तरह हो सकता है जैसे कि आज का मनुष्य अपने ईश्वर के सामने। हम उसके लिए सर्वशक्तिमान हो सकते है उसकी सारी क्रिया-कलापों को हम नियंत्रित कर सकते है लेकिन वास्तव में हम सर्वशक्तिमान नहीं है और न ही कोई हो सकता है, क्योकि हम अपने ईश्वर के सामने भिखारी है। हम सोच रहे है की हमे भी कोई नियंत्रित कर रहा है लेकिन यह बात वह मशीनी जीव नहीं सोच रहा होगा, उसके लिए हम ही ईश्वर है। हर प्रश्न का उत्तर एक नए प्रश्न को जन्म देता है इसलिए प्रश्नों के अंत के लिए हमने ईश्वर को गढ़ लिया है। सारे प्रश्नों को उसके जवाब के लिए ईश्वर पर छोड़ कर मुक्त हो जाते हैं हम खोजी बनते ही नहीं है। उपरोक्त बातों से मैं आप लोगों को नास्तिक प्रतीत हूंगा लेकिन मैं नास्तिक नहीं हूँ।
बुद्ध, महावीर ने कहा था कि ईश्वर नहीं है, वह नास्तिक प्रतीत होते हैं लेकिन उनका पुनर्जन्म में विश्वास था जो की मन में खटकता है, क्योंकि हम पुनर्जन्म को ईश्वर से जोड़ कर देखते है। कारण यह है कि वे कहते हैं "जिस तरह का स्वरुप ईश्वर का मनुष्य ने बना रखा है वह अतार्किक है क्योंकि वहाँ प्रश्न शेष है प्रश्नों का गिर जाना ही महत्व पूर्ण है।" उन्होंने कहा "सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही ईश्वर है उसका कोई विशेष रूप नहीं है। पूरी व्यवस्था का नाम ही ईश्वर है।" उन्होंने कहा था कि चेतना के मूल बिंदु पर तुम्हें इस व्यवस्था का पूर्ण ज्ञान होगा, जिसे हम ज्ञान कहते है, जिसकी एक मात्र उपलब्धि का साधन ध्यान है। मस्तिष्क के जागृत अवस्था मैं निर्विचार निष्काम हो जाना ही चेतना के केंद्र बिंदु पर पहुँचना है। क्योकि मैं नहीं पंहुचा हूँ इसलिए मैं आस्तिक भी नहीं हूँ, क्योकि खोज रहा हूँ ईश्वर को (उस व्यवस्था) इसलिए नास्तिक भी नहीं हूँ। मध्य बिंदु पर हूँ। उपरोक्त बातो के आधार पर मैं केवल इतना कहना चाहूँगा कि खोजी बने न कि समाज व् धर्म ने जो बता दिया उसको आँख बंद कर के अनुसरण करें।
मैं
कोई लेखक नहीं हूँ लेकिन एक विचारक जरूर हो सकता हूँ। और इस विचार के आधार पर चिंतन मनन कर सकता हूँ क्योकि मनन और चिंतन के मंथन से नए एवं प्रबुद्ध विचारों की उत्पत्ति होती है।
व्यवस्था के समष्टि रूप को ईश्वर नहीं माना जा सकता। यदि ऐसा होगा तो सारे धर्म और समस्त भाववादी दर्शन का जो तामझाम है वह भरभरा कर गिर पड़ेगा।
ईश्वर है तो पवित्रता है . ईश्वर को नकारने का मतलब है रिश्तों की पवित्रता को नकारना. जीव विज्ञान रिश्तों कि पवित्रता का उपदेश नहीं देता.
क्या आप अपनी माँ , अपनी बहन और अपनी बेटी के साथ पवित्र रिश्ता नहीं रखते ?
अपनी माँ , अपनी बहन और अपनी बेटी के साथ अगर आप पवित्र रिश्ता रखते हैं तो आप ईश्वर कि आज्ञा मान रहे हैं . इसका मतलब यही है कि आप ने ज़बान से तो ईश्वर के वुजूद को नकार दिया लेकिन अपने जीवन से और अपने कर्म से उसके मौजूद होने की गवाही देते रहे .
है न ताज्जुब की बात ?